Monday, May 10, 2021

To those who belong to the Road!



अब न मुझको याद बीता

मैं तोह लम्हों में जीता
चला जा रहा हूँ
मैं कहाँ पे जा रहा हूँ...
कहाँ हूँ?
इस यक़ीन से मैं यहाँ हूँ
की ज़माना यह भला है
और जो राह में मिला है
थोड़ी दूर जो चला है
वह भी आदमी भला था
पता था
ज़रा बस खफा था
वह भटका सा राही मेरे गाँव का ही
वह रास्ता पुराना जिसे याद आना
ज़रूरी था लेकिन जो रोया मेरे बिन
वो एक मेरा घर था
पुराना सा डर था
मगर अब न मैं अपने घर का रहा
सफर का ही था मैं सफ़र का रहा
इधर का ही हूँ न उधर का रहा
सफर का ही था मैं सफ़र का रहा
इधर का ही हूँ न उधर का रहा
सफर का ही थ मैं सफ़र का रहा
मैं रहा...
मील पत्थरों से मेरी दोस्ती है
चाल मेरी क्या है राह जानती है
जाने रोज़ाना...
ज़माना वही रोज़ाना
शहर शहर फुर्सतों को बेचता हूँ
खाली हाथ जाता खाली लौट'ता हूँ
ऐसे रोज़ाना
रोज़ाना खुद से बेगाना...
जबसे गाँव से मैं शहर हुआ
इतना कड़वा हो गया की
की ज़हर हुआ
मैं तो रोज़ाना ना चाहा था 
ये हो जाना मैंने ये उमर वक़्त रास्ता गुज़रता रहा
सफ़र का ही था मैं सफर का रहा.......
सफ़र का ही था मैं सफर का रहा.......

Cheers!